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Friday, June 26, 2020

TheUntold

MasterSahab©
                    ......उनकी यादें.....

यूँ  ट्रेन की पटरियों  पे चलते हुए एक अजीब दास्ताँ.....

सुरु कैसे करू,तुम से मिलु या फिर आज बहाना कर दू|

यूँ तो तुमसे बहुत कुछ कहना था|पर  अब कहना भी क्या,जब

तुम हो ही नहीं की मेरी ख़ामोशी सुन लो|


वो आखिरी मुलाकात और तुम्हारे जनाजे के निचे मेरा हाथ|
सोचता था ,की अपनी ही साँसे तमको  दे दू|

आखिरी बार ही सही तुम्हे अपना  कह दू|

मेरी लाल आंखे जो ऐसा लग रहा था कितने जन्मो से सोई नहीं, 
थी वो अश्को से भरी भरी ,और तुम काँधे पे  मेरे रख कर सर सोई थे|

न मेरे लब कुछ कहना चाहते थे न तुम्हारे कह सकते थे|
वो उदासी का मौसम था,न तु मेरा था न मै तेरा था|

यूँ तो हर कदम तेरे साथ ही चला था मै,हर साँस पे तेरी आहटें सुनता था मै|

पर  न आज वो अदावतें हैं न तेरा तगाफुल न ही मेरा तुझे मानाने की हसरतें|

सबक कुछ  था तुझमे बस बेवफाई न थी|पर आज..............................

हर  कोई  रोया तेरे जनाज़े पे ,पर  लब पे मेरे तुझसे जुदाई होने की दुहाई न थी|

Copyright©:MasterSahab©